Saturday, November 17, 2007

बहस विकास के मॉडल पर ...

विकास वह शब्द है जिसके इर्द-गिर्द मानव अपने ज्ञान-विज्ञान का पूरा ताना-बाना बुन रहा है। अपनी क्षमताओं का प्रयोग सुविधाओं और बेहतरी के लिए किया जाए यह ख़ुशी की बात है लेकिन जब इस विकास को पाने की पद्धति में विनाश का बीजारोपण हो तो स्थिति काफी चिंतनीय हो जाती है। विकास योजनाओं का स्वरूप कैसा हो और उनमें किनकी कितनी भागीदारी हो यह विचारणीय हो गया है।
'विकास किसके लिए' और 'विकास का लाभ किसे' जैसे मुद्दों पर अब बड़े पैमाने पर बहस छिड़ रही है। कई आन्दोलन भी हो रहे हैं जिनसे जुडे लोगों को अतिरेक में विकास विरोधी भी कह दिया जाता है। विकास परियोजनाओं का दंश झेलने वाले लोगों का एक जत्था हाल ही में जनादेश यात्रा के रुप में राजधानी पहुंचा था।
विकास और विनाश की इस ज्वलंत ऊहापोह को टटोला है मासिक पत्रिका भारतीय पक्ष ने अपनी आवरण कथा में। पत्रिका ने जनादेश यात्रा के बहाने शोषितों कि आवाज को भी उठाया है तो वहीं विकास के आतंक का भी वर्णन किया है। सेज के बहाने भू-अधिग्रहण का संत्रास हो या अलग अलग परियोजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर हुआ उडीसा में विस्थापन। इन बिन्दुओं पर चर्चा की गयी है। इतना ही नहीं डूबते हरसूद के टीवी परदे पर लाने वाले विजय मोहन तिवारी का साक्षात्कार और परिचर्चा भी आप इसमें पढ़ सकते हैं। विशेष जानकारी के लिए पत्रिका की वेबसाईट http://www.bhartiyapaksha.com/ भी लॉग ऑन कर सकते हैं।

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