ब्लोगिस्तान में भटकते-भटकते खबर लगी कि समाज सेवा व स्वयंसेवा के बीच कुछ लफडा हो गया है। सच्चाई क्या है इस पर दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। ताजा प्रकरण पर विशेष कछ नहीं कहना चाहूंगा, सिवाय इसके कि सिक्कों की खनक हो या ताकत की धौंस इनका प्रयोग कर कोई आदमी सच्चाई पर पर्दा नहीं डाल सकेगा। जैसा आशीष जी ने लिखा पब्लिक सब जानती है। मामला मीडिया में उछला तो शायद कुछ ज्यादा ही जानेगी। मैं इस मामले से अलग कुछ शेयर करना चाहता हूँ। वह विषय भी बच्चों से ही जुडा है।
जब भी कोई दिवस आता है, उसे भुनाने के लिए तमाम बिचौलिए पहले से तैयार बैठे होते हैं। बीते बाल दिवस पर मैं एक बस में सफर कर रहा था, मेरे ठीक आगे दो लडके जिनकी उम्र बमुश्किल 12-13 साल होगी, बूट पोलिश के साजो-सामान कंधे पर टाँगे घूम रहे थे। यह स्थिति मेरे लिए कतई आश्चर्यजनक नहीं थी। लेकिन आश्चर्य का विषय इसके बाद आया। उनमें से एक लडके घुटने के पास एक हरे रंग का बैज लगा था जिस पर अंग्रेजी में लिखा था- "I Know my rights, do you? www.cry/....." मुझे झटका सा लगा।
निश्चय ही बांटे गए बैज्स और टोपियों का आंकडा कहीं दिखा कर ऐसी संस्थाएं अपनी पीठ थपथपाती होंगी। और बच्चे किस स्तर तक अपने अधिकार जान पाते हैं, यह आपके सामाने है। अभी हाल ही में केन्द्र सरकार ने भी फर्जी समाजसेवियों की सूची जारी की है। शायद बड़ी मछलियाँ उनमें ना हों।
खैर उस लडके को सिर्फ बैज मिल था या उसके बारे में कुछ ज्ञान भी यह जानने की अपेक्षा मैं सहज पूछ बैठा- "भाई, यह कहाँ से मिला तुम्हें?" लड़का डरते हुए बोला -"कहीं से नहीं, आपको चाहिए क्या?" मैंने जबाव दिया -"नहीं चाहिए, पर मिला कैसे?" फिर उसका जबाव था-"पीवीआर के पास पोलिश कर रहा था तो एक भैया ने शर्ट पर लगा दिया।" मैंने पूछा- "क्यों लगाया?" जबाव था- "पता नहीं, सिर्फ इतना बोला की घर जाने तक लगाए रखना। आपको चाहिए तो ले लो।"
मुझे याद आया कि नौवी कशा में मैंने एक नामी प्रकाशक की किताब खरीदी थी। उस पर cry के लोगो के साथ लिखा था कि उस किताब की कीमत में से एक रूपया बच्चों के कल्याण के लिए खर्च किया जाएगा। उसी समय एक नामी नमक कम्पनी के नमक पैक पर भी ऎसी ही जानकारी होती थी। तब वैसे सामान खरीद कर ख़ुशी मिलती थी। लेकिन यह कल्याण किस तरह हो रहा है वह प्रत्यक्ष देखने का मौका मुझे इस दिन मिला था।
यह संस्था भारत ही नहीं विश्व स्तर पर बाल कल्याण कार्यक्रमों के लिए सुर्ख़ियों में रही है। लेकिन जिस तरह के अनुभव अब मिल रहे हैं, उनको देखते हुए कहा जा सकता है कि कुएँ में भंग पड़ी है, भंग की छोड़ कुआं साफ करने की सोची जाए।....