Tuesday, January 12, 2010

जायका बनाम रोटी

साल 2010 आ चुका है। राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर सरकार के बहुप्रचारित आडम्बर पर से परदे हटने में ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं। सरकार कथित मेहमानों की तयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। उनकी जीभ का स्वाद बरक़रार रहे, इसके लिए गोमांस तक परोसने की तैयारी है और उनकी आँखों में धुल धूसरित दिल्ली खटक ना जाए इसके लिए सडकों की पटरियों तो क्या, स्टेशन और बस अड्डों के बाहर से रेहड़ी, ठेले, खोमचे सब हटाये जा रहे हैं। कितनों कि रोज़ी बलात छीनी जा रही है, इसकी कोई गिनती नहीं। न तो सरकार की तरफ से न ही तथाकथित समाजसेवियों की तरफ से। हो भी क्यों? मेहमाननवाज़ी करनी है। समर्पण के साथ। चाहे घर के लोग पेट की भूख से बिलबिलायें। विदेशियों का जायका खराब नहीं होना चाहिए।

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यह सब सोचते सोचते एक दूसरी तस्वीर भी दिमाग में उभरती है। मैं अभी कुछ दिनों पहले नॉर्थब्लाक में था। वही जगह जहां भारत सरकार के कई महत्वपूर्ण मंत्रालय हैं। इन हाई प्रोफाइल भवनों के भीतर नेताओं और सरकारी मेहमानों के भीतर तमाम सुविधाएं हैं। यहाँ सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग भी आते हैं, जिनकी पहुँच इन भवनों के अन्दर नहीं है। अपने काम से वह घंटो सडकों पर खड़े रहते हैं। मैं जब गया तो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कारोबारियों से गुफ्तगू कर रहे थे। इसकी खबर जुटाने के लिए कोइ 50 - 60 पत्रकार उनके दफ्तर के बाहर डेट थे। कोई इतनी ही संख्या गृह मंत्रालय के बाहर थी। अन्दर चिदंबरम साहब तेलंगाना मसले पर बैठक कर रहे थे।

बाहर खडी भीड़ में तमाम ऐसे भी लोग थे जो अपने प्रिय नेताओं या इन दफ्तरों में काम करने वाले अपने परिजनों से मिलने आये थे। इनमें से कुछ को तकनीकी कारणों से बाहर इंतज़ार करना पड़ रहा था। कईयों को जनसुविधाओं की जरुरत महसूस हुई। अनुपलब्धता देखकर कुछ ने सरकारी दीवारों को सार्वजनिक संपत्ति जानकर उनका सदुपयोग शुरू कर दिया। कुछ ने वहां पार्किंग में मौजूद ड्राइवरों और गार्डों से इस बारे में पूछा। जबाव था- ये वी आई पी इलाका व्यस्ततम। यहाँ कोई सुविधा नहीं है । दायें बाएं देखकर काम निपटा लो।

जब वी आई पी इलाकों का यह हाल हो बाकि जगह का अंदाजा लगाया जा सकता है। व्यस्ततम कनाट प्लेस का हाल सबको पता है. जन सुविधाओं के लिए कितना असुविधाजनक शुल्क तय कर दिया गया है, यह भी दिल्ली वाले जानते हैं. बिना इनकी चिंता किये सरकार सिर्फ बिल्डिंगों को चमकाने के प्रयास में दिख रही है.. अब आप ही सोचिए क्या ज्यादा जरुरी है? बाहरी चमक दमक और फाइव स्टार होटलों के अन्दर विदेशिओं का जायका या फिर बुनियादी सुविधाएं और आम लोंगों कि रोटी?

Saturday, March 28, 2009

खुदीराम के वो बोल

अंग्रेज प्रशासक किंग्स्फोर्ड को मौत के घाट उतारने मुजफ्फरपुर जाते समय प्रसिद्द क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने अपनी मां से कहा...

मुजफ्फरपुर जाइबो

किंग्स्फोर्ड मारिबो

मां बिदाई दाओ

मां बिदाई दाओ

एक बार बिदाई मां पूरे आसी

हांसी हांसी पोरबो फांसी

देखबे भारतवासी

फांसी ते कोड़ जीवन के शेष

तुई की मां ऐइ ताहिरे जननी

तुई की मां ऐइ ताहिरे देश

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Friday, February 6, 2009

क्या वाकई मंदी छा गयी है?

इन दिनों चारो तरफ़ एक ही शोर सुनाई दे रहा है। मंदी, मंदी, मंदी, ... छंटनी, छंटनी, छंटनी.... कुछ बड़े कारोबारी घराने आस लगाए बैठे हैं कि इसी बहाने सरकारी खजाने से कुछ उनके लिए भी निकल आए। कई ने तो महीनों पहले से कर्मचारियों के वेतन भत्तों में में कटौती और अन्यखर्चों में कमी कर दी है।
इसकी मार सबसे ज्यादा झेलनी पड़ रही है अभी अभी पढाई पूरी कराने वाले छात्रों को या उन लोगों को जिन्होंने जूनियर लेबल पर नौकरी शुरू ही की थी। ऊँचे पदों पर बैठे अधिकतर वेतनभोगी अभी भी सुरक्षित हैं हालाकि, उनकी भी साँसें अटकी हुई हैं। एक अनजाने अनदेखे खौफ के कारण। नौकरी से निकाले जा रहे तमाम जूनियर लेबल के नौकरीपेशा लोगों ने शिकायत शुरू कर दी है कि मालिक अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए उनका सर कलम कर रहे हैं।
वैसे एक बात ध्यान आते है। तब मंदी का शोर शुरुआती दौड़ में था। प्रतिष्ठित मीडिया समूह जी न्यूज के मालिक सुभाष चंद्रा का बयान आया कि मंदी ने मीडिया पर असर दिखाना शुरू कर दिया है और अब विज्ञापन कम मिल रहे हैं। यकीन मानिए, इस बयान के बाद जी न्यूज के एक ख़ास कार्यक्रम का विज्ञापन समय देखने से पता चला कि विज्ञापन समय का अनुपात पहले के मुकाबले बढ़ा है, घटा नहीं। ऐसा और मामलों में भी सम्भव है।
आशंकित मंदी से निपटने के उपयोग किए जा रहे तौर तरीके भी संदेहास्पद मालूम पड़ते हैं। अधिकतर जगह निचले स्तर के कर्मचारियों को ही क्यों खामियाजा उठाना पर रहा है? क्या समेकित तौर पर पूरी कंपनी संभावित नुकसान को झेलने के लिए आगे नहीं आ सकती है? वैसे
yah सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या वास्तव में दुनिया भर की आर्थिक उठा पटक ने भारत को भी प्रभावित किया है? अगर हाँ तो क्यों और किस हद तक? क्या पश्चिमी आर्थिक मोडल पर निर्भर होना इसका एक कारण है?

मुद्दे की तह तक जाने के लिए आप सबकी राय अहम् है। इसलिए इस ब्लॉग पर एक पोल आयोजित किया गया है। कृपया अपना वोट दें और अपनी राय टिपण्णी या इमेल के जरिए riteshinmedia@gmail.com पर भेजें। आपकी प्रतिक्रया का इंतजार है..