कुछ दिन पहले मेरा एक मित्र दिल्ली आया। वह कलिंग विश्वविद्यालय का छात्र है। दिल्ली पहली बार आने के कारण दिल्ली विश्वविद्यालय देखने की इच्छा हुई।
हम दोनों पैदल ही विश्वविद्यालय परिसर में चल रहे थे। डुसू कार्यालय के सामने एक बडे पोस्टर पर कुछ मुस्कुराते चेहरों को देखकर वह पूछ बैठा ये कौन हैं?
मैं कुछ कहता या वह खुद के दिमाग से कुछ सोचता या नजर ऊपर नीचे जाती इसके पहले उसके चंचल मन ने एक और सवाल दाग दिया - "कहीं ये आईएएस जैसी परीक्षाओं में सफल प्रतियोगी तो नहीं?
हम दोनों पैदल ही विश्वविद्यालय परिसर में चल रहे थे। डुसू कार्यालय के सामने एक बडे पोस्टर पर कुछ मुस्कुराते चेहरों को देखकर वह पूछ बैठा ये कौन हैं?
मैं कुछ कहता या वह खुद के दिमाग से कुछ सोचता या नजर ऊपर नीचे जाती इसके पहले उसके चंचल मन ने एक और सवाल दाग दिया - "कहीं ये आईएएस जैसी परीक्षाओं में सफल प्रतियोगी तो नहीं?
"अरे नहीं" जब तक मैं यह जबाव दे पाता खुद उसकी नजर पोस्टर के सबसे उपरी हिस्से में गयी जहाँ मोटे अक्षरों में लिखा था- छात्रसंघ चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाले के लिए बधाईयाँ। नीचे की कतार कुछ नवोदित छात्रनेताओ के नाम लिखे थे। विश्विद्यालय परिसर आने जाने वाले लोग सहज इस स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं।
मित्र ने पूछा "क्या यही दिली विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी पहचान है?"
मैं मुस्कराया, फिर मुझे लगा कि दोस्त ठीक ही पूछ रहा है। हालांकि आगे चल कर उसे फिर एक बार आश्चर्य हुआ क्योंकि पोस्टरों से ढंके वाल ऑफ़ डेमोक्रेसी पर सबसे ऊपर लिखा था 'प्लीज स्टिक बिल हेयर'। वह बोला अब तक तो पोस्टर चिपकाने से रोकते देखा था, यहाँ चिपकाने को क्यों कहा गया है।
वह दिवि के इस लोकतांत्रिक कायदे से अनभिज्ञ था। चुनावों के समय की पूरी जानकारी पाकर उसकी जिज्ञासा कुछ शांत हुई।
इसके बाद कई और प्रश्नों और उत्तर का सिलसिला चलता रहा लेकिन दिवि की पहचान पर उठाया गया उसका सवाल आज भी मेरे जेहन में कौंध रहा है। और आज भी बार बार मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या विद्या अर्जन कर शिखर पाने वाले लोग भी विश्वविद्यालय की पहचान बन पाएंगे या इन नेताओं के बराबर शोहरत पाएंगे?
आप का क्या कहना है?
वह दिवि के इस लोकतांत्रिक कायदे से अनभिज्ञ था। चुनावों के समय की पूरी जानकारी पाकर उसकी जिज्ञासा कुछ शांत हुई।
इसके बाद कई और प्रश्नों और उत्तर का सिलसिला चलता रहा लेकिन दिवि की पहचान पर उठाया गया उसका सवाल आज भी मेरे जेहन में कौंध रहा है। और आज भी बार बार मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या विद्या अर्जन कर शिखर पाने वाले लोग भी विश्वविद्यालय की पहचान बन पाएंगे या इन नेताओं के बराबर शोहरत पाएंगे?
आप का क्या कहना है?
2 comments:
Accha Vishay chunaa hai,
is vishay par vistaar se
ek BLOG kee apeksha hai.
bahut badhya ...........accha prayas hai...................
keeep it up
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