साल 2010 आ चुका है। राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर सरकार के बहुप्रचारित आडम्बर पर से परदे हटने में ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं। सरकार कथित मेहमानों की तयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। उनकी जीभ का स्वाद बरक़रार रहे, इसके लिए गोमांस तक परोसने की तैयारी है और उनकी आँखों में धुल धूसरित दिल्ली खटक ना जाए इसके लिए सडकों की पटरियों तो क्या, स्टेशन और बस अड्डों के बाहर से रेहड़ी, ठेले, खोमचे सब हटाये जा रहे हैं। कितनों कि रोज़ी बलात छीनी जा रही है, इसकी कोई गिनती नहीं। न तो सरकार की तरफ से न ही तथाकथित समाजसेवियों की तरफ से। हो भी क्यों? मेहमाननवाज़ी करनी है। समर्पण के साथ। चाहे घर के लोग पेट की भूख से बिलबिलायें। विदेशियों का जायका खराब नहीं होना चाहिए।
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यह सब सोचते सोचते एक दूसरी तस्वीर भी दिमाग में उभरती है। मैं अभी कुछ दिनों पहले नॉर्थब्लाक में था। वही जगह जहां भारत सरकार के कई महत्वपूर्ण मंत्रालय हैं। इन हाई प्रोफाइल भवनों के भीतर नेताओं और सरकारी मेहमानों के भीतर तमाम सुविधाएं हैं। यहाँ सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग भी आते हैं, जिनकी पहुँच इन भवनों के अन्दर नहीं है। अपने काम से वह घंटो सडकों पर खड़े रहते हैं। मैं जब गया तो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कारोबारियों से गुफ्तगू कर रहे थे। इसकी खबर जुटाने के लिए कोइ 50 - 60 पत्रकार उनके दफ्तर के बाहर डेट थे। कोई इतनी ही संख्या गृह मंत्रालय के बाहर थी। अन्दर चिदंबरम साहब तेलंगाना मसले पर बैठक कर रहे थे।
बाहर खडी भीड़ में तमाम ऐसे भी लोग थे जो अपने प्रिय नेताओं या इन दफ्तरों में काम करने वाले अपने परिजनों से मिलने आये थे। इनमें से कुछ को तकनीकी कारणों से बाहर इंतज़ार करना पड़ रहा था। कईयों को जनसुविधाओं की जरुरत महसूस हुई। अनुपलब्धता देखकर कुछ ने सरकारी दीवारों को सार्वजनिक संपत्ति जानकर उनका सदुपयोग शुरू कर दिया। कुछ ने वहां पार्किंग में मौजूद ड्राइवरों और गार्डों से इस बारे में पूछा। जबाव था- ये वी आई पी इलाका व्यस्ततम। यहाँ कोई सुविधा नहीं है । दायें बाएं देखकर काम निपटा लो।
जब वी आई पी इलाकों का यह हाल हो बाकि जगह का अंदाजा लगाया जा सकता है। व्यस्ततम कनाट प्लेस का हाल सबको पता है. जन सुविधाओं के लिए कितना असुविधाजनक शुल्क तय कर दिया गया है, यह भी दिल्ली वाले जानते हैं. बिना इनकी चिंता किये सरकार सिर्फ बिल्डिंगों को चमकाने के प्रयास में दिख रही है.. अब आप ही सोचिए क्या ज्यादा जरुरी है? बाहरी चमक दमक और फाइव स्टार होटलों के अन्दर विदेशिओं का जायका या फिर बुनियादी सुविधाएं और आम लोंगों कि रोटी?